मैं बेटी हूं...
न मैं दुनिया में आई थी,
न अपनी आंखें खोल पाई थी
फिर भी मृत्यु शैय्या पर लेटी हूँ
क्यों, क्योंकि मैं बेटी हूं?
जबकि उत्तम कर्म मेरा है
फिर क्यों मुश्किल जन्म मेरा है
वो जो मां की गोदी में लेटा है
इसलिए की वो बेटा है?
दुख जो मां-बाप को देता है
और नहीं कोई, वो बेटा है
सुख मां-बाप को जो पहुंचाती
जन्म नहीं है वो ले पाती।
क्यों अब भी अभिशाप है बेटी
क्यों आखिर मां जन्म न देती
खुशी मनातें हैं सब लोग
जब जन्म लेता है बेटा
और जन्म जो ले ले बेटी
पिता कंही उदास है लेटा।
न अपनी आंखें खोल पाई थी
फिर भी मृत्यु शैय्या पर लेटी हूँ
क्यों, क्योंकि मैं बेटी हूं?
जबकि उत्तम कर्म मेरा है
फिर क्यों मुश्किल जन्म मेरा है
वो जो मां की गोदी में लेटा है
इसलिए की वो बेटा है?
दुख जो मां-बाप को देता है
और नहीं कोई, वो बेटा है
सुख मां-बाप को जो पहुंचाती
जन्म नहीं है वो ले पाती।
क्यों अब भी अभिशाप है बेटी
क्यों आखिर मां जन्म न देती
खुशी मनातें हैं सब लोग
जब जन्म लेता है बेटा
और जन्म जो ले ले बेटी
पिता कंही उदास है लेटा।
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